हैरान हूँ,आवाक हूँ
सृष्टि की पहिचान हूँ,
हैरान हूँ, परेशान हूँ
इसलिए कविता में हूँ।
काँटों सा चुभता हूँ
इसलिए फूलों में हूँ,
इधर-उधर लुढ़कता हूँ
इसलिए पथ पर हूँ।
हैरान हूँ,समाचार हूँ
इस सतत विकास में हूँ,
मन से विचलित हूँ
इसलिए आन्दोलित हूँ।
इस भ्रष्टाचार में,
इस सदाचार में,
झूठ-सच से मिला
कलियुगी समाधान हूँ।
पहाड़ सा हूँ
अतः धरती पर हूँ,
टूटता-फूटता
पर सतत खड़ा हूँ।
*** महेश रौतेला