मातृभाषा का महोत्सव (हिंदी दिवस 2025)
हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान।
भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।।
माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान।
गंगा-जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।।
तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार।
कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।।
मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत।
भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।।
प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश।
साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।।
महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत।
दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।।
रसखान की राधा बानी, रही प्रेम की धुन।
हिंदी का उत्सव यही, हिंदी का अभिमान।
संविधान की गोद में, राजभाषा का मान।
विश्वपटल पर गूंजती, भारत की पहचान।।
आज तकनीकी युग में भी, हिंदी लहराए।
मोबाइल की स्क्रीन पर भी, हिंदी ही छाए।।
कीबोर्ड से लेकर मंचों तक, इसका ही है राज।
विश्व पटल पर बोल उठी है, हिंदी की आवाज।।
नवयुवक जब लिखते इसमें, नया सपनों का गीत।
विश्व मंच तक पहुँच रही है, हिंदी की यह जीत।।
अभिषेक नवयुग के कवि, करें जब काव्य-विचार।
हिंदी की नौका को मिलते, नव-दिशा, नव-धार।।
ना केवल भाषा भर ये है, ना केवल संवाद।
ये है संस्कृति की जड़ें, और भारत का गान।।
त्याग, तपस्या, बलिदानों की, इसमें है परछाई।
भारत माँ की कोख से निकली, यह अमर सच्चाई।।
बच्चों की पाठशालाओं में, गूंजे इसकी तान।
गाँवों-शहरों, खेतों-खलिहानों, इसका सम्मान।।
गीतों में मधुरता इसकी, वाणी में मिठास।
साहित्य की धड़कन यह है, यह है भारत-श्वास।।
आओ मिलकर हिंदी को अब, दें हम ऊँचा मान।
विश्व-पटल पर गूंज उठे फिर, हिंदी का जयगान।।
हर भारतवासी बोले अब, हिंदी की ही बात।
हिंदी ही हो पथ हमारा, हिंदी ही हो साथ।।
लेखक: अभिषेक मिश्रा (बलिया)