कि तुझे भूलने के लिए याद करता हूं मैं,
कुछ हद तक अपनी आदतों से सुधर रहा हूं मैं,
और जानता हूं तूने बदल लिया है शहर अपना,
फिर भी तेरी गली से गुजर रहा हूं मैं,
और तू खिड़की पर नहीं फिर भी गुलाब फेक आया,
यार ये किस बेशर्मी से उतर रहा हूं मैं।
- Sunita bhardwaj