लबों पे ख़ामोशी का असर है, दिल में तूफ़ान बाकी है,
जो कहना था सब कह चुके, अब सुनना कुछ भी नहीं है।
ये फ़ितूर ही तो है जो रूह से लिपटा हुआ है,
वरना इस दुनिया में अब अपना रहना कुछ भी नहीं है।
सबने नकाब ओढ़ रखे हैं सलीकों के नाम पर,
सच कहो तो लगता है कि सच कहना कुछ भी नहीं है।
हमने भी दिल में दर्द को फूलों सा पाल रखा है,
जो दिखता है मुस्कराना है, मगर खिलना कुछ भी नहीं है।
हर बात को तोड़ते हैं हम ख़ामोशी के साए में,
चेहरों पे रौशनी है मगर उजाला कुछ भी नहीं है।
लफ़्ज़ों के मेले में भी तन्हा सा रहता है दिल,
भीड़ में हैं सब मगर कोई अपना कुछ भी नहीं है।.....✍️