तू बरसे...
तो धरती की प्यास बुझती है...
पेड़ हरे हो जाते हैं...
ज़मीन मुस्कुराने लगती है।
हर बूँद, जैसे नई उम्मीद लाती है...
हर कोना फिर से जी उठता है।
लेकिन एक जगह ऐसी भी है…
जहाँ न ज़मीन है, न पेड़…
बस एक दिल है…
जो कब से सूखा पड़ा है।
जहाँ मुस्कान बस नक़ाब बन गई है…
और बातें... सिर्फ़ ज़रूरत की हैं…
वहाँ तू कब बरसेगा?
कभी उन दिलों को भी भिगो दे...
जो सालों से पत्थर बने बैठे हैं।
जहाँ प्यार की बूँदें बरसे...
और दिल भी मुस्कुराना सीखें।
तू बारिश बन...
पर सिर्फ़ धरती के लिए नहीं…
उन दिलों के लिए भी जो बरसना भूल गए हैं।
प्रेम भी एक बारिश है —
जहाँ बरसे, वहाँ जीवन महके।
नर