Hindi Quote in Poem by Lokesh Dangi

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रणभेरी

वज्र छूटते चरणों से जब, नभ काँपे, धरती डोले,
शेर दहाड़े वन में जिस क्षण, शत्रु मूर्छित हो बोले।

रुक सकता कब पवन प्रबल जब, पर्वत से टकरा जाए,
रुक सकता कब सूर्य, धरा को, ताप दिए बिन रह जाए?

यह मातृभूमि अमरानी है, इसकी माटी का मान न हो,
जो दुश्मन आँख उठाए इस पर, वह जीवित, यह ज्ञान न हो।

गंगा की धार नहीं बुझ सकती, न हिमगिरि झुक सकता है,
जो खड़ा द्वार पर शत्रु बनकर, वह राख सुलग सकता है।

हम तो रक्त लिखेंगे रण में, जो न समझेगा बातों से,
हम शूल बनेंगे पथ-पथ पर, जो खेलेगा जज़्बातों से।

आओ फिर हुंकार भरो, फिर गर्जो नभ की छाती में,
फिर चमक उठे यह देश हमारा, बल, शौर्य, महिमा-भाषी में!

Hindi Poem by Lokesh Dangi : 111969499
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