अग्नि के फूल
धधक उठे हैं खेत हमारे,
प्यासा है हर गाँव का चूल्हा।
बेटा मरता भूख से देखो,
माँ ने तोड़ा मौन का तुला।
नदियाँ रोतीं, पर्वत चीखें,
धरती की चूड़ी टूटी है।
हाट-बाजारों में आज भी
रोटी सबसे छोटी है।
बूटों की ठोकर से घायल,
रस्ते पथराये हैं।
कोई रोकर कहे दुहाई,
कोई भूखे सो जाये हैं।
सत्ता की चौखट पर बैठी,
श्वानों की टोली देखी।
भूखी जनता मरती जाए,
पर पेट भरे की होली देखी।
बाँध दो अब हाथ सरकार के,
मत भरो चुनाव में झांसा।
आँखों में अंगार भरो,
अब ना सहो यह तमाशा!