विरह – तेरे बाद…
तेरे बाद,
रातें लंबी हो गईं,
नींद किसी भूले हुए मोड़ पर छूट गई,
और सपने…
वो तो शायद तेरे साथ ही चले गए।
तेरे बाद,
दरवाज़े की वो हल्की दस्तक नहीं होती,
ना कोई नाम लेकर बुलाता है।
अब आवाज़ें आती हैं,
पर उनमें तेरा सुकून नहीं होता।
तेरे बाद,
बारिश अब भी होती है,
पर वो पुरानी खुशबू नहीं लाती।
अब बादल बरसते हैं,
पर मैं खिड़की से नहीं देखता,
क्योंकि वहाँ कोई साथ भीगने वाला नहीं।
तेरे बाद,
दिल हज़ार बार कहा कि जी लूँ,
पर हर बार तेरी यादें,
कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेती हैं,
मुझे रोकने का,
मुझे फिर से उसी मोड़ पर ले जाने का,
जहाँ से तू मुझसे बिछड़ा था।
तेरे बाद… मैं वहीं खड़ा हूँ,
जहाँ तेरा इंतज़ार अधूरा रह गया था।