आज के दिन



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पता नहीं पापा



कैसे याद किया जाए आपको?



कुछ रक्त के रिश्ते ऐसे



जो भुलाए कहाँ जा सकते हैं?



सिमटे रहते हैं हमारे भीतर वे



हर पल पकड़े रहते हैं



विचारों की ऊँगलियाँ



जिनके सहारे सोचते हैं हम



बहुत कुछ, ला पाते हैं उसे



व्यवहार में



व्यक्तित्व चमकता है...



गाँधी जी की चिता के दर्शन करने



माँ-पापा भयंकर भीड़ में चले दिल्ली 



छह माह की अपनी बची ख़ुशी को



एक सफ़ेद तौलिए में लपेटे



भीड़ के साथ घिसटते हुए....



हो गई रात, बिछड़ गए सभी



सोचा, आज गई ये बची खुची भी



लेकिन आश्चर्य बच गई !



भूखी,प्यासी उछलकर...



पापा ! आपने बताया



जीवन के अंतिम क्षण तक



बने रहना है छात्र ! 



हम कभी नहीं होते 'परफेक्ट'



कितनी भी शिक्षा क्यों न हो..



एक और बात



मस्त रहे ज़िंदगी भर



घूमते देश-विदेश



वेदों का करते प्रचार...



अंतिम समय में 



क्यों रहे उदास?



'जो जीवन जी रहे हो बैस्ट है '



बताया मुझे... क्यों?



प्रश्न छोड़ गए...।



योग करने जाते हुए



टकराकर गाड़ी से



हो गए शांत सदा के लिए



'पोस्ट मार्टम' के लिए 



आपको ले जाते हुए देख



मैं रो नहीं सकी...



सोच रही थी 



'आप हर समय 'शतं जीवेत्'     



की भावना भरते रहे



लेकिन.... आज  



प्रश्न बने,श्वेत वस्त्र में लिपटे



आप मेरे सामने थे



मेरे होठों पर जाने क्यों



व्यंग्य पसर गया था....





डॉ. प्रणव भारती

Hindi Poem by Pranava Bharti : 111813848
alpana punetha 2 year ago

हृदयस्पर्शी रचना बहुत सुंदर

shekhar kharadi Idriya 2 year ago

पिताजी के साथ बिताए हुई हृदय स्पर्शित स्मृतियों को पढ़कर मन भावुक हो गया / अत्यंत भावपूर्ण रचना....

Pranava Bharti 2 year ago

सच कहा आपने प्रिय नीरजा👍

Neerja Pandey 2 year ago

Be had bhavuk hota hai pita ke sath bitaya hua har pal.

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