सुभोर स्नेहियों
---------------
निर्वाक,मौन,स्तब्ध
फुदकती सी ,किलकती सी वह
ताज़ी सुगन्धित किशोरी पवन
ले जाती है मुझे
जाने कहाँ-कहाँ
बिठाकर सपनों के उड़न -खटोले में
सदियों से
आस से,प्यास से
तरसता भ्रमित मन
डोलने लगता है ----
और ---जैसे
सारा संसार डोलने लगता है |
डॉ. प्रणव भारती