मुट्ठी भर धरती

जो जननी है मानवता की
जिसके दम पर सारी सृष्टि
संपूर्ण नहीं जीवन जिसके बिन
उसकी स्थिति पर डालें दृष्टि

क्यों जीवन उसको नहीं मयस्सर
वो इच्छित नहीं न सपना है
साँसों का भी हक नहीं जिसे
वो रक्त हमारा अपना है

वो तो अभिमान है आँगन का
शोभा है दो परिवारों की
मुट्ठी भर धरती उसको भी दें
दें सेज नहीं अंगारों की

पालें दुलारें मान नेह दें
स्वीकार करें उसको मन से
क्यों बेटों से कमतर रखें
क्यों वंचित हो वो जीवन से

मत भेद करें बेटी-बेटे में
हर संतान सहारा है
रस-रंग सुग॔ध माधुर्य सभी कुछ
उनसे संसार हमारा है

जन्म उन्हें लेने दें हँसकर
उनके अस्तित्व से प्यार करें
वो ईश्वर की सर्वोत्तम रचना
मत उसका संहार करें

मौलिक एवं स्वरचित

श्रुत कीर्ति अग्रवाल
shrutipatna6@gmail.com

Hindi Poem by श्रुत कीर्ति अग्रवाल : 111775102
shekhar kharadi Idriya 2 year ago

अति सुन्दर प्रस्तुति

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