जब तनाव आता है
प्यार के कुछ कंकड़ ले
मन में उछाल देता हूँ,
तुम्हें पेड़ के नीचे खड़ा कर
कुछ फूल चुनने लगता हूँ।

या फिर वर्षा में तरबतर हो
तुम्हें छाते के अन्दर ले आता हूँ,
दो-चार कदम चलते-चलते
भारी तनाव मिटा लेता हूँ,
स्मृति में ले आता हूँ कुछ ऐसा
जो गुदगुदा देता है सारे सुख- दुख।

बिछा देता हूँ अपनी इच्छा को
जाने पहिचाने पलों के, जानी पहिचानी आँखों में,
अब उतावला नहीं होता हूँ
किसी भेंट के लिए,
बस, दो-चार क्षण चुरा लेता हूँ।

प्यार की आदि शक्ति को मनन करने,
बार-बार देखता हूँ पीछे
आशा से नहीं, वीतराग योगी सा,
कोई नहीं वहाँ, लेकिन बहुत कुछ है जो मिटा नहीं अब तक
नापता है मुझे क्षण-क्षण श्रीकृष्ण- राधा सा प्यार,
मुट्ठी में उसी प्यार के कुछ कण ले
बन्द किये हूँ मुट्ठी।

** महेश रौतेला

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111760090
shekhar kharadi Idriya 3 year ago

उत्कृष्ट सृजन..

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