दुखाती हैं यादें
सालों चलने के बाद भी,
आसमान से झांकती हैं
जैसे तुम्हारी ही आँखें हों।
संबोधन हो अनछुआ सा,
कदम हों हमारे इतिहास के,
उड़ते हुए आ, लटक जाते हैं,
कभी हाथों पर, कभी कंधों पर,
जैसे बच्चे झूलते थे बचपन में।
मेरी पाठशाला के उस पाठ में
तक्षशिला और नालन्दा आये थे
भारत की ही भाषा लेकर,
तब से टकटकी लगाये
सारे विश्व को टटोलते,
एक लकीर बन अड़े हुए हैं,
भारत को थपथपाने के लिए।

*महेश रौतेला
२३.१०.२०१५

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111759028
shekhar kharadi Idriya 3 year ago

अति सुन्दर,....

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now