श्राद्ध :

मैंने तुमको ढूंढा कैसे
तुम मुझमें रहते क्षण-क्षण कैसे,
मेरे सुख बोले हैं तनकर कैसे
मेरे दुख बनते हैं छुपकर कैसे!

मेरी नींद खुलती है पल में कैसे
सपने आते अतिशय कैसे,
मनुष्य बनता है राक्षस कैसे
गिद्ध दृष्टि फैलती जग में कैसे!

सत्य हमसे बनता कैसे
न्याय हमको प्रिय है कैसे,
श्राद्ध हमारे मृत को कैसे
तुम रहते हो कहीं हममें ऐसे!

* महेश रौतेला

Hindi Poem by महेश रौतेला : 111755229
shekhar kharadi Idriya 3 year ago

बेहतरीन...

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