#शिकार

चौबीसे घंटे कार्य में व्यस्त रहतीं
जीवनभर गृहस्थी में डूबीं रहतीं
सभ्य संस्कारों में पिसती रही
परंपरागत जड़ों में मिटती रही
प्रतिक्षण सेवा में खोई रहतीं
उपकार पर उपकार करतीं रही

फिर भी क्यूँ.. जुल्म सितम की
शिकार एक स्त्री बनती रहीं ?

रोकटोक कड़वे घूंट पीकर
व्यंग्य बाणों का प्रहार झेलकर
तिरस्कृत के खट्टे भाव चखकर
निरुत्साह के तीखें स्वाद जानकर
दुत्कार के ज़हरीले शब्द सुनकर
प्रताडऩा के तीक्ष्ण ज़ख्म सहकर

फिर भी क्यूँ.. जुल्म सितम की
शिकार एक स्त्री बनतीं रहीं ??

वो रोज जीकर मरती रही
रीतिरिवाजों के पोखर में
यातना की नदी में, बंद दिवारों में
अल्पसंख्यक सपने मारकर,
स्वयं का ठोस अस्तित्व भूलाकर
निर्दयी विचारों में सौबार रेंगकर

फिर भी क्यूँ ..जूल्म सितम की
शिकार एक स्त्री बनतीं रही ???

जीने की आश एकबार न रखकर
क्रूर समाजों में सहस्त्र बार टूटकर
इच्छाओं में छिन्न भिन्न होकर ,
हृदय से द्रवित फटती रही
देहके टूकड़े टूकड़े करके
पतझड़ कि तरह झड़ती रही
स्वयं को स्वयं में तलाशती रही

फिर भी क्यूँ..जुल्म सितम की
शिकार एक स्त्री बनतीं रही ????

(१९/९/२०२०)

-© शेखर खराड़ी

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111573297
नाईशा 4 year ago

Very nice lines...heart touching...👏👏👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद मित्र श्रेष्ठ जी👋

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से बहुत धन्यवाद मित्र श्रेष्ठ जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद पारुल जी 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से धन्यवाद 👏

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

दिल से बहुत धन्यवाद रमा जी 👏

Rama Sharma Manavi 4 year ago

उत्तम प्रस्तुति

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