ना हाथों मे लकीरें कुछ,

ना किस्मत का ठिकाना हैं।

यहाँ हर बादशाहत का,

भाग्य ही बस बहाना है।।


कर्म को छोड़ के हर नर,

उलझ जाता लकीरों में।

भाग्य के ही सहारे आज,

खुद बेघर जमाना है


भाग्य के ही सहारे नर,

कर्म सुख छोड़ देता है।

गुजरती हर निगाहों का,

कर्म मुख मोड़ लेता है।।


भाग्य और कर्म में,

अक्सर लड़ाई रोज होती है।

भाग्य मन तोड़ देता है,

कर्म फिर जोड़ लेता है।।


अरे मन मूर्ख बन कर क्यूँ,

भाग्य के गीत गाता है।

भाग्य का साथ है दिन सा,

जो खुद ही बीत जाता है।।


भाग्य पन तू गोते क्यूँ,

लगाता है लकीरों के।

अलौकिक कर्म से ही नर,

भाग्य को खुद बनाता है।।


देखो लकीरें हाथ की,

कुछ कह रही नर से।

कर्म मत बन्द करना तुम,

भाग्य की मार के डर से।।


हाथ जिनके नही होते वो,

नर भी काम करता है।

क्या वो नर कर्म करना छोड़ दे,

दुर्भाग्य के डर से।।


#कर्मा

Hindi Poem by Maya : 111535705
Shree 4 year ago

wah wah!!! karm aur nar ki samanta👌👌👌👌

Maya 4 year ago

Dhanybad 😊

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