बिना स्वयं के विकास के ही हम शिक्षित हो रहे है आज के परिवेश मे शिक्षा क्या है? मूल मे जाकर देखा जाये तो केवल बाहरी चीजो पर शोध , उन शोधो द्वारा निर्माण, उसी निर्माण को समझ फिर उसी पर शोध फिर कोई नई चीज समझ आती है अविष्कार सम्बोधन मे यह निरन्तरता बनी रहती है | हम केमिकल की शोध दिन-रात कर रहे है शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ,और उसके साकारात्मक और नाकारात्मक परिणाम के बीच अपना सारा जीवन समाप्त कर देते है | जिस शरीर के लिए यह परपंच है उस शरीर को कौन समझ सका है ? विज्ञान का कहना हम समझ चुके है, इसी के आधार पर खोज की जा रही है , मै कहती हूँ यदि आप जान गये है तो ,दवाइयाँ बनाने के पश्चात जानवरो पर इसका इस्तेमाल क्यों करते है सीधा मनुष्यो को क्यो नही दे दी जाती ,यही बात विज्ञान की पोल खोल रहा है |शरीर क्या है , शरीर कैसे काम करता है ,इसे कौन चलाता है , और आखीर मे यह शरीर निष्क्रिय प्राणहीन क्यों हो जाता है | कभी इस पर विज्ञान ने शोध नही किया , कभी इसको शिक्षा का माध्यम नही बनाया गया | विज्ञान की तो क्षुद्रता उसे ऐसा करने से रोकती है , विज्ञान स्वयं मे अपूर्ण है वह ज्ञान की बराबरी कैसे कर सकता है | विज्ञान केवल वि पर चलता है अर्थात विषय ज्ञान जबकि ज्ञान असीमित, अनन्त,उन्नत स्वयं मे पूर्ण है खैर, हम तो यहाँ शिक्षा की बात करने चले थे , आज की शिक्षा प्रणाली केवल विषयो का ज्ञान दे रहा है , और विषयो का ज्ञान हमे विषयों की तरफ ही ले जा रहा है , जो असहनशीलता, मानसिक कमजोरी जो शारीरिक पतन का भी कारण बनती जा रही है | हमारी पीढ़ी शिक्षित तो हो रही है किन्तु स्वयं से अपरचित ज्ञान से दूर यह मानव मात्र के विनाश का सूचक है यदि हम अभी से सचेत न हुए तो वह दिन दूर नही की इस धरती पर मानवी आकृति मे भावहीन केवल मशीन ही रह जायेगी जो पशु ,पक्षियों, जीव , जन्तुओं से बद्तर होगी , इसका कारण उनमे आनन्द ही समाप्त हो जायेगा | इसकी भयावहता की हम मात्र कल्पना ही कर सकते है | समय रहते यदि हमे स्वयं को इस स्थिति से बचाना है तो हमे पुरातन शिक्षा प्रणाली को वर्तमान शिक्षा प्रणाली मे स्थान देना होगा , नई शोध, नये अविष्कार के साथ अध्यात्मिक उन्नति ही हमारी पीढ़ी को इस स्थिति मे पहुँचने से बचा सकती है |