यूँ दौड़ते भागते लापरवाह से हम,
किसे पता था मुश्किलें क्या होती है..
हां चोट लगने पर दर्द तब भी होता था,
पर दोस्तो के साथ खेल में याद किसे रहता था..
मुश्किलों को ठोकरों में उड़ाना तो बचपन में था,
ग़मों को दिल से लगाना तो अब सीखे है..
नाराज़गी में वो हप्पा/कुट्टा की समझदारी,
तो केवल बचपन में थी,
गुस्से में दुश्मनी निभाना तो अब सीखे हैं..