यूँ हम अपनी किसमत बदलने लगे हैं।

तुम्हे देखकर सिर्फ चलने लगे हैं।


वो तालीमका बोझ बच्चों को दे कर।

खयालों के पर को कुचलने लगे हैं।


मसाइल जो सुलजाने आये यहां थे।

वही तो हमे आज खलने लगे हैं।


भला अपने बच्चों को क्यों कोसते हो।

तुम्हारे कदम पर ही चलने लगे हैं।


फ़क़त इतना दस्तूर है ज़िंदगी का।

गिराते है सब को जो चलने लगे है।

महबूब सोनालिया

English Blog by Author Mahebub Sonaliya : 111202949
Umakant 5 year ago

महेबुब साब आपका शुक्रगुज़ार हुँ फ़ोन नंबर का उपयोग नहि कर पाता क्यों की में ९० साल का सीनियर सीटीझन हुँ आँखें भी कमजोर होने लगी है,भीर भी थोड़ा बहोत पढ़ लेता हु ?

Umakant 5 year ago

आभार आपका ?

Umakant 5 year ago

मसाइल जो सुलतानों आये यहाँ थे

Author Mahebub Sonaliya 5 year ago

Kya samajna hai bhai sahab. 9725786282 mera whatsapp number hai ap waha miliye

Umakant 5 year ago

भाइ साब जरा समजाने की कोशिश करेंगे ?

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