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Yatendra Tomar

Yatendra Tomar

@yatendratomar.539906
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शाम तुम मेरा ही प्रतिबिंब हो
तुम मुझसे ही बल पाती हो

उदासी में मेरी उदास तुम हो जाती हो
लयता में मेरी तुम भी तो रम जाती हो

तुम हर दिन रुप नया धरती हो
मन पर साफ दर्पण सी पड़ती हो

जब शब्द मेरे थम जातें हैं
तुम शब्दकोश बन आती हो

गढ़ती हो नूतन से अर्थ
फिर पाठ कोई पढ़ाती हो

शाम तुम मुझसे उपजती हो
फिर मुझमें ही ढल जाती हो

-Yatendra Tomar

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