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अशोक बाबू माहौर

अशोक बाबू माहौर

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खिड़की खुली थी

खिड़की खुली थी
थोड़ी सी,
धूप सरक आई
किनारे से!
रेंगती इर्द - गिर्द
करती क्रीड़ाएं बच्चों सी।
तपने लगे कपड़े
रोशन हुआ घर
दूर हुई
अंधेरी
खिलखिलाने लगे चेहरे
प्यारे - प्यारे।

- अशोक बाबू माहौर

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