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मैंने महफिलों में जाना छोड़ दिया है, अब सारे दर्द अकेले संभाल लेता हूं। #Shiv
Dear अपरिचित, कैसी हो? खुश ही होगी.... मुझे याद है वो दिन जब हम पहली बार कॉलेज के प्रोजेक्ट के सिलसिले में मिले थे तुम्हारी झुकी आंखों ने मानो कोई गहरी चोट कर दी हो वो मीठा दर्द आज भी चुभता है सीने में, तुम्हे याद है जब मैंने तुम्हे अपनी प्रोजेक्ट फाइल देकर अकड़कर कहा थी की इसे पूरा कर देना कैसे हड़बड़ा गई थी ना तुम.... उसके बाद फिर बातों का सिलसिला मार्क जुकरबर्ग की देन फेसबुक पर शुरू हुआ.. मुझे याद है वो पहला फोन कॉल जब तुम मेरी आवाज सुनकर खिलखिलाकर हंस पड़ी थी, और मेरा तुम्हारा पहला सवाल की इन बातों से कितनी लड़कियां पटाई हैं भी मुझे याद है कि तुमने कैसे मुझे अपनी बातों में उलझाए रखा और फिर कॉल 5:36 सेकंड से कब 1 घंटा और 26 मिनट पहुंच गई मालूम ही नहीं पड़ा। वो तुम्हारे पास रात में कॉल करके देर रात तक तुम्हारी फुसफुसाहट को सुनना और तब तक सुनना जब तक कि वो फुसफुसाहट तुम्हारी सांसों में ना तब्दील हो जाय। फिर धीरे धीरे करके फोन कॉल कम होने लगे कॉल पर बातें भी कम होने लगीं कभी तुम अपने घर परिवार में व्यस्त कभी मैं अपने दोस्तों में व्यस्त सबकुछ मानो बिखरता चला गया फिर धीरे धीरे करके वो दिन भी आ गया जब हमारी बातें कम और झगड़े ज्यादा होने लगे यूं तो झगड़े आम जिंदगी का हिस्सा होते हैं लेकिन तुम्हें तो मेरी हर वो बात बुरी लगने लगी जो पहले कभी सुनकर तुम मुस्कुराया करती थी पता नहीं ये तुम्हारा चिड़चिड़ापन था या मुझे लेकर कोई और बात। कभी कभी खयाल आता था की क्या तुम वही हो जो मुझसे पहले बात करती थी या फिर मैं बदल गया हूं। फिर आया वो मोड़ जिस मोड़ पर अक्सर रिस्ते दम तोड दिया करते हैं हर बात को बतंगड़ बनाना हर बात पर बहस हर बात पर फोन काट देना हर बात पर किसी तीसरे इंसान का जिक्र... मानो जैसे किसी ने चलती हुई नाव को मझधार में ही डूबोने के लिए छेद कर दिया हो। ये सब शायद मैंने कुछ दिनों बाद अहसास कर लिया और तुमसे इस मुद्दे पर बात करनी चाही और फिर मैंने तुमसे सारी बातें कह डाली तुमने सुना और फिर तुमने शायद कुछ दिन के लिए उन बातों को रट लिया। फिर कुछ दिन तो सबकुछ ठीक ठाक चलता रहा लेकिन, फिर से वही बातें वही बहस ना जाने किस मोड़ पर ले जाने का आदेश दे रहीं थीं? खैर छोड़ो.... और बताओ? #नया_आशिक़
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