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लेट लतीफ़ II:- मेरे बोस के बोस थे बड़े ही सिंसियर, ठीक समय पर दफ्तर, सही समय पर जाते घर लेकिन मेरे बोस थोड़ी सी देर से आते थोड़ी देर की आधी, हम भी पचा जाते एक दिन हमने प्रण किया, हम भी समय से जाएंगे थोड़ी सी देरी के लिए, झाड़ नही हम खाएंगे सुबह सुबह घर से निकल पड़े साढ़े सात पत्नी ने रोका व टोका, क्या हो गई बात एक घंटा पहले आज कहां जाओगे क्या किसी कलमुंही को पार्क में बुलाओगे ऐसा है तो आज मैं भी साथ चलूंगी तुम्हारे साथ उस चुड़ैल का भी मुंह नोच लूंगी मैंने बतलाया व समझाया दे उदाहरण समय से दफ्तर जाने का लिया है हमने प्रण दफ्तर हम पहुंचे तो बज गए थे नो लेकिन चोकिदार अभी तक रहा था सो हमने उसे जगाया और समय बताया पर वो नींद में ही कुछ ऐसा बड़बड़ाया ऐ बाबू क्या आज घर से लड़ आया है खुद ही भाग आया या घरवाली ने भगाया है मैंने उसे उठा कर समझाया दफ्तरी कानून वो पूछने लगा, बाबू ये कैसा चढ़ा तुम्हें जुनून अभी तुम जाओ बाबू दस बजे आना सफाई यहां की करवाकर मुझे घर है जाना बैंच पर मैं बैठ गया वहीं दफ्तर के बाहर समय बिताने के लिए पढ़ने लगा अखबार अखबार पढ़ते पढ़ते आंख लग गई व सो गया आंख खुली तो देखा सबआ गए मैं लेट हो गया चुप रह गया मैं सोचकर, ऐसा अपना फेट शायद अपनी तकदीर में है जाना दफ्तर लेट ।।
लेट लतीफ़ :- देर से आना बड़े लोगों की शान है, जो जितना लेट पहुंचे उतना ही महान है। एक बार एक शादी करनी थी अटैंड, हम वहां पहुंचे तो बज रहा था बैंड़। स्वागत बारात का समय सात लिखा था, श्रीमती जी भी बोली ,हां ऐसा ही दिखा था। दुल्हा था घोड़ी पर बांधे हुए सेहरा, फूलों में छिपा हुआ ,हम देख ना सके चेहरा। रही है वो शादी जिसमें था हमें आना, समय व स्थान सही था ,इसलिए हमने माना। लोग सभी गैर थे चेहरे लग रहे थे पराये, हम थे प्रतिक्षा में, कोई जिनकार तो आये। किसी से हमने पूछा, कहां हैं लड़के के पापा, भारी भरकम को देखअपना कलेजा कांपा कौन है यह आदमी, किसका है यह ब्याह, क्या यही वह बारात है आना था हमें जहां कहने लगे भरकम जी ,देग हमारा मुंह दो घंटे लेट चले हर बारात समूह । यह बारात है पांच की, पहूंची यहां पर सात तुम्हें न्योता सात का, चलना था नो के बाद नो के बाद चलकर देर से शादी में गर आते बड़े लोगों की तरह तुम भी सम्मानित हो जाते
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