The Download Link has been successfully sent to your Mobile Number. Please Download the App.
13
8.5k
30.1k
vp_topic
"Unkahe रिश्ते - 3" by Vivek Patel read free on Matrubharti https://www.matrubharti.com/book/19940514/unkahe-rishtey-3
लड़की को लिखे जा रहा हूँ।। की चाँद, फूल, मोती, बारिश, तितली क्या कुछ नही मानता हूँ, लेकिन में उस लड़की को इश्क़ लिखे जा रहा हूँ। है जिंदगी भर का सफर मेरा और उसका, लेकिन अगर कोई पूछे तो, हालात के मारे मुकर जाया करता हूँ। और अगर तू मंज़ूर करे, तो कायनात के आखरी दरवाजे तक, हमारा साथ लिखे जा रहा हूँ। की येह मिठास वाली बातों में, हिसाब पगलाया रेहता है मेरा, लेकिन जब तरक तू रूबरू हुई है, तब तरक से हर ज़ायके को चासनी लिखे जा रहा हूँ। जी यह हर आवाज़ कानो को, पसंद नही है, लेकिन तेरी पायलों की छनछनाहट को, विणा के सुर समजे जा रहा हूँ। उठते शोर, बेचैनी और, मुश्किल-ए-ज़हमतो के बीच, में तुम्हे सुकून माने जा रहा हूँ। एक तरफ, में सारे सवालों को नजरअंदाज कर रहा हूँ, एक ओर तुम्हारा भेजा मैसेज है, जो में बार बार रतटे जा रहा हूँ। अब किताबो से रुखसत सी हो गई है, में बेवजह पन्ने फाडे जा रहा हु, वो कागज़, जो ता-उमर मिलन के खिलाफ था, में वो सारे सूची में जलाये जा रहा हूँ, की तुझसे बिछड़ने के डर से, में सदैव साथ देने का वचन लिखे जा रहा हूँ। तुजसे मिलने के बेतहाशा सपने, देख बैठा हूँ मै, अब येह वक्त को होते ज़ुल्म लिखे जा रहा हूँ। और हाथो में तेरा-मेरा मिलना लिखा नही था, में पागल, तेरे नाम की लकीर खिंचे जा रहा हूँ।
Continue log in with
By clicking Log In, you agree to Matrubharti "Terms of Use" and "Privacy Policy"
Verification
Download App
Get a link to download app
Copyright © 2023, Matrubharti Technologies Pvt. Ltd. All Rights Reserved.
Please enable javascript on your browser