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सोच कुमार

सोच कुमार

@thinkduniagmail.com3597
(1)

ये हवा भी अंदर तक जला जाती है,
जब बेड़ियों में जकड़ी आंखों को उसकी आजादी नजर आती है।

राहें अंधेरी हैं, गलियां सुनसान हैं,
दुख के इस सफ़र में, अपने भी अनजान हैं।

#कीमती
मत पूछ मुझसे कीमत मेरे उसूलों की,
पूरी दुनिया को ठुकरा कर मैंने ये ईनाम पाया है।
जब ठुकराया मुझे इस दुनिया के मतलबी कायदों ने,
तब मेरा #कीमती ईमान ही मेरे काम आया है।।

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यह इतिहास की पहली गर्मी की छुट्टी है,
जिसमें किसी ने गोवा या मसूरी जाने का प्लान नहीं बनाया।

इतनी तन्हा हो गई है जिंदगी मेरी,
ग़म तो छोड़ो, कोई खुशियां बांटने भी नहीं आता।
- सोच

दूसरों को टोकने में तो जिंदगी गुजार दी।
कभी अपनी गलती पर भी ध्यान दे लेते।।

#सभ्य
सभ्य जो ढूंढन मै चला, सभ्य मिला ना कोय,
जो बोर्ड पढ़ा नगर का, नाम ही कलयुग होय।
यहां ना मिलेगी सभ्यता, मैं रहा खोज गलत,
यहां दुर्दशा पर अपनी, वसुधा नित दिन रोय।।

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#सभ्य

सोचा था कि सभ्य समाज की नींव बनुंगा।
अब ना तो सभ्यता बची और ना ही समाज।।

गुनाह ना उसका था ना मेरा।
बस गलतफहमी का था डेरा।।