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Tanvi Singh

Tanvi Singh

@tanveeii1988gmail.com1636


पैगाम....

कोई कहता मैं हिन्दू हूँ,
कोई कहता मैं मुस्लमान हूँ,
लेकिन कोई ये ना कहता मैं एक इन्सान हूँ,
क्या हिन्दू और क्या मुस्लमान ,
क्या यही है आज कल लोगों की पहचान ,
इसलिए लेते है लोग एक दुसरे की जान,
धर्म से किसी इन्सान को ना पहचानों,
हर किसी को उसकी काबिलियत से जानों,
और हर धर्म को दिल से मानो,
हर आदमी यहाँ खुदा का बंदा है,
लेकिन हर कोई यहाँ अँधा है,
बंधी है पट्टी सबके आखों पे धर्म की,
उखाड़ फेका है वो मुखौटा शर्म की,
लेकर एक दुसरे की जान,
कहते हो मैं हूँ एक अच्छा इन्सान,
कैसी ये इन्सानियत है,
क्या यही लोगों की नियत है,
क्यों करते है लोग यहाँ एक दुसरे से नफरत,
क्या लोगों की बस यही है हसरत,
ऐ खुदा मेरी तुझसे यही है इबादत,
मिटाकर उनकें दिलों से नफरत,
भर दो एक दूसरे के लिए मोहब्बत!!

*तन्वी सिंह*
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