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सुबह सुबह बेटी ने किया एलान.. माँ मुझे फर वाला तौलिया मत दिया करो मैं कौतुहल में निमिर्मेश निहार रही.. फिर बर्बश चहकी बेटी की ज़बान, मैं न बनना चाहूँ कोई ब्यूटी क्वीन !! एक सिपाही जैसा फौलाद मुझे बनाओ , मुझे इस दुनिया में जीना सिखाओ। शब्द नही मिल रहे मुझे, सोचा कैसे मासूमियत को रौंदे। प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा में, रही बिटिया मुझे निहार । समय की मांग को जानती हूँ, आपकी दुविधा पहचानती हूँ। मत करो विचार इतना ज्यादा मजबूत है अब अपना इरादा। नजरों में तूफान में चाहूँ, इरादों में चट्टान मैं गाँछु। ममता कभी मिटती नही, संकटों से डिगती नहीं। बन जाओ तुम मेरी गुरु देदो मुझे एक नई पहचान। अन्यथा कोई भी काली परछाईं करती रहेगी मेरी अवगति अंजान ..। डॉ. श्रीमति सुशीला पाल।
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