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आइना दोष औरों के गिनाते रहे तुम आइना सबको दिखाते रहे तुम कभी अपने अंदर भी झांक लेते कमियां अपनी भी आंक लेते। तो दोष औरों के न देख पाते खुद को अवगुणों से भरा पाते फिर आइना क्यों देख पाते क्यों आईने से डर गए तुम ।
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वात्सल्य ये जिंदगी अब तो छुपा ले मुझे अपने वात्सल्य की शीतल छाँव में दे दे कुछ सुकून भरी साँसें मुझसे अब और जंग लड़ी जाती नहीं।
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#स्वादिष्ट प्रेम से परोसा हुआ सादा भोजन भी स्वादिष्ट पकवान है अनिच्छा से परोसे हुए छत्तीस व्यंजन भी जहर समान हैं।
#मंदिर उसका पता ढूँढ़ रहा इंसान मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे यहाँ वहाँ क्यों ढूंढ़े उसको वो तो तेरे भीतर प्यारे।
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