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मेरे अलग होने का वजूद यही है जीना सीखा है पिताजी से और कोई सबूत नहीं है -शुभम त्रिपाठी
मैंने लिखा है ख़्वाबों की कल्पना से तुमको तुम्हारा ना होना मैंने सोचा ही नहीं -शुभम त्रिपाठी
मॉडर्न मोहल्ला एक समय हो गया अपने मोहल्ले में रहते हुए। में कपडेल वाले घर में रहता था सामने बड़ा सा मैदान उस में खेलते अलग अलग उम्र के लोग जेसे मैदान का आधे से ज़्यादा हिस्सा बड़े लोगों का जो क्रिकेट इतनी गम्भीरता से खेलते है की मानो अब के IPL में lordganj ही जीत की ट्रोफ़ी उठाएगी धोनी और अम्बानी बस तालियाँ बजा के मन में गालियाँ देंगे । छोटे बच्चों को जितनी जगह मिलती है वो उसको ही अपना वानखेड़े स्टेडीयम समझ के बौनड्री बना लेते हे । इस बीच अगर बढ़े बच्चों की बॉल छोटे के पास आजाए तो छोटे बच्चे उससे बड़ों के हाथ में ला के देंगे या पारम्परिक गुंडागर्दी सदियों से चलती आ रही थी । जिसका विरोध शायद किसी पुलिसवाले या वकील या समाज सेवकों ने नहीं किया । इस बीच एक दिन फ़रमान जारी हुआ की अब मैदान में 8 मंज़िला इमारत बनेगी उसमें लिफ़्ट लगेगी बड़े साहब लोग रहेंगे । मन थोड़ा बेठ सा गया की ये मोहल्ला जहाँ जब सवेरे उठो तो सामने झुण्ड में खड़े वो लड़के जो अंग्रेज़ी और पंजाबी गानो में घंटो चर्चा करते रहते थे ।वो छोटे बच्चे जो सवेरे से उठ के बड़े मैदान में खेलने को एक ऊपर वाले का चमत्कार समझते थे । शाम को टहलते हुए महिलायें का एक समूह पूरी रोड में ऐसे क़ब्ज़ा करके चलता था मानो 'हमसे जो टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा । इस बीच कुछ अंकल शहर के बिगड़ते हालत और उनके थाने के टी.आइ का विवरण देते नज़र आते थे ।लड़कों के खड़े झुंड में एक लड़का हमेशा अपने घर परिवार मित्र की शौर्य गाथा सुनाता है मानो कारगिल युध में इन्होंने ही अपनी जीत का लोहा मनवाया था और बाक़ी सब खड़े उसे सुनते की कब वो चुप हो तो कुछ मतलब की बात कर सके। खुदे हुए मैदान में जो मिट्टी के टीले बने हे मानो बचपन की यादों को खोद किसी ने दिल में रख दिया हे। शोर कहु या बच्चों का चेहचाहना, बड़ों का चौका या छक्का मारने के बाद छिलाना अब नहीं होता । एक निरस्ता ने जेसे मन को घेर लिया हो । वो पुराना मोहल्ला अब मॉडर्न कॉलोनी का जो रूप ले रहा है । - शुभम त्रिपाठी
है जो कोरा काग़ज़ दिल का कैसा उस पर गीत लिखूँ लिखूँ तुम्हें मीत मन का या गैर कोई प्रीत लिखूँ -शुभम त्रिपाठी
राम से पूछो सीते बिन दुनिया कितनी सूनी है है सीते सार शृष्टि का राम नाम की धूनी है । -शुभम त्रिपाठी
उसे ख़्वाब था मेरे से हमारा कमरा सजाने का कम्भ्ख्त मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ ना था । -शुभम त्रिपाठी
भूख से ज़्यादा पापी और मृत्यु से बड़ा सत्य नहीं है । - शुभम त्रिपाठी
इन गुरूर से बने शहरो को अब गाँव की विनम्रता का आभास हुआ । - शुभम त्रिपाठी
क्या लिखूँ उनके बारे में जिनके ईश्वर भी अधीन है । Happy mothers day
वो मौत भी जानती थी किसका दरवाज़ा खटखटाना है । औरंगाबाद में असमय काल कवलित हुए श्रमिको को श्रदंजलि अस्तब्द तथा निशब्द हूँ । -शुभम त्रिपाठी
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