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ज़िंदगी को गले लगाएँ। ### **चलो ज़िंदगी को गले लगाएँ** चलो ज़िंदगी को गले लगाएँ, हर मोड़ पे मुस्कराएँ, हर आँसू को मोती समझें, हर दर्द से कुछ सीख पाएँ। चलो धूप में चलना सीखें, छाँव की ना बात करें, जो पथरीले रास्ते हों, उनमें भी सौगात भरें। चलो उम्मीदें बोते जाएँ, मन की ज़मीनों में, जहाँ निराशा अंधी हो, वहाँ दीपक जलाएँ। चलो थोड़ी ख़ामोशी से अपने मन को टटोलें, भीड़ में भी ख़ुद को पाएं, अंदर की आवाज़ खोलें। चलो सपनों को फिर से पंख लगाएँ, जो टूटा है, उसे जोड़ें, हर असफलता की राख में एक उम्मीद का फूल उगाएँ। चलो रिश्तों को फिर से जीएँ, पुरानी बातों को भूल जाएँ, माफ़ कर के आगे बढ़ें, टूटे हुए दिल को फिर से सजाएँ। चलो मां के आँचल में लौट चलें, उस सादगी की शरण में, जहाँ हर आशीष थी मौन में, हर घाव को मिलती थी मरहम में। चलो पिता की डाँट को याद करें, जो छिपे प्यार की भाषा थी, हर सख़्ती में ममता बहती, हर खामोशी में आशा थी। चलो भाई की तकरार को हँसी बनाएँ, बहन के रुठने को प्यार से मनाएँ, जिस घर में बचपन बसा था हमारा, उसी छत के नीचे फिर से लौट जाएँ। चलो बारिश की बूंदों में नहाएँ, भीगें, जैसे बचपन में भीगते थे, कीचड़ में पाँव गंदे हों, मगर मन सच्चा हँसता हो। चलो फिर से वो गीत गाएँ, जो माँ लोरी में सुनाती थी, वो कहानियाँ जो दादी की गोदी में रातों को नींद बन कर आती थीं। चलो गाँव की पगडंडी पकड़ें, जहाँ खेतों की हरियाली बोले, जहाँ मिट्टी की सौंधी खुशबू में सपनों की उर्वरता झोले। चलो शहर की भीड़ में ख़ुद को अकेला ना समझें, हर चेहरे में एक कहानी पढ़ें, हर नज़र में एक भाव रचें। चलो आज कोई नया काम करें, जो कभी डर से नहीं किया, चलो डर को गले लगाकर उससे भी प्यार करें। चलो फिर से किताबें पढ़ें, जिनमें जीवन के रंग भरे, कभी कविता की छांव में बैठें, कभी गद्य में जीवन जिएँ। चलो अपने भीतर उतरें, जहाँ आत्मा की नदी बहती, जहाँ न सवाल होते, न जवाब, बस एक मौन सच्चाई कहती। चलो उस मौन को सुनें, जो कभी शब्दों से परे होता है, जो आंखों की भाषा समझता है, जो हृदय की पीड़ा पढ़ता है। चलो जीवन को सहेजें, ना कि उसे सिर्फ़ जी लें, हर क्षण को भर लें प्रकाश से, हर साँस को प्रेम से सी लें। चलो किसी अजनबी से बात करें, हँसी बाँटें, ग़म बाँटें, चलो इंसानियत को ज़िंदा करें, फिर से रिश्तों की नींव डालें। चलो किसी भूखे को खाना दें, बिना उसका नाम पूछे, चलो किसी की आँखों में चुपचाप थोड़ा प्यार दें। चलो कोई पेड़ लगाएँ, जो छाया बने किसी और के लिए, जो फल दे बिना भेदभाव के, जो आकाश से बातें करे। चलो अपने वक़्त को बाँटें, उन्हें जो अकेले हैं, जो बिस्तर से बाहर नहीं निकल पाते, जो भीड़ में भी अकेले हैं। चलो ज़िंदगी की किताब में एक नया अध्याय जोड़ें, जिसमें हर पंक्ति में उम्मीदों की कहानी हो। चलो ग़लतियों से दोस्ती करें, उनसे सीखें, उनसे जिएँ, चलो 'अहं' को छोड़कर 'हम' में जीना सीखें। चलो मृत्यु से ना डरें, बल्कि जीवन को पूरी तरह जिएँ, हर सुबह को नया अवसर मानें, हर रात को आभार से विदा दें। चलो प्रेम करें, बेझिझक करें, कह दें जिसे कहने से डरते हैं, क्योंकि जो नहीं कह पाए, वो ही जीवन भर सालते हैं। चलो कल का इंतज़ार ना करें, आज को संपूर्ण रूप से अपनाएँ, क्योंकि यही पल सबसे सुंदर है, इसे जीना ही असली जीवन है।
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