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Aasiya

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@shaheena


"औरत..."

चुप रहकर भी बहुत कुछ कह जाती है,
मुस्कुरा कर भी, हर ग़म सह जाती है।

हर दर्द को अपने आँचल में छुपा लेती है,
और फिर दुनिया को हँसकर वही प्यार दे देती है।

कभी माँ बनकर ममता की छाँव देती है,
कभी बहन बनकर दोस्ती निभा देती है।

वो बीवी के रूप में घर को सजाती है,
और बेटी बनकर रौशनी सी छा जाती है।

टूटती है… बिखरती है…
फिर भी हर सुबह खुद को समेट लेती है।

औरत… बस एक जिस्म नहीं,
वो रूह है — चलती हुई दुआ की तरह।

सिर्फ़ इज़्ज़त नहीं चाहिए समझ भी चाहिए।

क्योंकि वो खामोश है, कमज़ोर नहीं।

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जिसे टूटकर चाहा, उसी ने टुकड़ों में छोड़ दिया — अब खुद को जोड़ने में ज़िंदगी लग रही है..."