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रंग फागुन (होली ) के या हो कुदरत के जीवन में उतर ही जाते हैं लाल टेसू मन में उमंग और पीले पीले गुलमोहर एक छाप दे जाते हैं धानी चुनर ओढ़ के जब खेत लहलहाते हैं बदरंग होती ज़िन्दगी में यह अपना असर छोड़ जाते हैं !
क्यों तुम्हारे साथ बिताई हर शाम मुझे आखिरी सी लगती है.... जैसे वक्त कॉच के घर को पत्थर दिखाता है...!!
मस्ती के रंग छलके आँखों में ये है आहट शायद होली की...
https://youtu.be/WEKb7tpuuLw
कोई तो होता ...... दिल की बात समझने वाला सुबह के आगोश से उभरा सूरज सा दहकता रात भर चाँद सा चमकने वाला....
निकले थे घर से ले कर किसी समुंदर का पता पर कभी उसके साहिल तक को छू भी ना पाए हाथ में आई सिर्फ़ रेत मेरे और लबो पर हैं अनबुझी प्यास के साये....
तुम भी ....... भावनाओ में जीते हो? अहसास इसका तब हुआ मुझको. जब गिने दिन तुमने हमारी मुलाक़ातो के, प्यार के, बातो के, और उन सपनो के............ जो सच नही होने थे शायद..............?
"शेडो "बहुत बड़ी हकीकत होती है चेहरे भी हकीकत होते हैं ,पर कितनी देर ? शेडो जितनी देर तक आप चाहे चाहे तो सारी उम्र उम्र बीत जाती है पर वह ख्यालो में आने रुकते नहीं ,बल्कि जाने के बाद और भी याद आते हैं और यह शेडो हर शरीर के नियम से आज़ाद होती है
बूंद बूंद मेह टपकता रहा टिप टिप यादें दस्तक देती रही गुजर गया यह साल भी कुछ नफे नुक्सान की पोटली थमा कर नए साल की आहट उम्मीद की सांस पर नए गीत शब्दों में बुनती रही रंजू भाटिया
ज़िन्दगी हर कदम पर नया रंग दिखायेगी गीत लिखते हुए नया यह उस से जुड़ जायेगी
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