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राम शिरोमणि पाठक

राम शिरोमणि पाठक

@ramspathak007gmail.com3212


।।।।।।।।ग़ज़ल।।।।।

गूँगा होकर भी बोलता हूँ मैं।।
गौर से देख आईना हूँ मैं।।

कैद करने की है अबस कोशिश।
ये भी तू जान ले हवा हूँ मैं।।

मेरे होने का अब सबब ही क्या?
वो तो कहते हैं बद मज़ा हूँ मैं।।

याद करने का कुछ सबब तो था।
वो सबब याद कर रहा हूँ मैं।।

कैद दिल है कफ़स है यादों का।।
एक अरसे से गुमशुदा हूँ मैं।।

राम शिरोमणि पाठक

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