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JITENDRIYA

JITENDRIYA

@raja.
(2)

पानी के रंग से रंगी गुजरती जिंदगी,
मुरझाये फूलों से भी कभी कोई खुशबू आती है?
हमने भी देखे थे हसीन सपने मुहब्बत के,
अब तो तेरी कलम से भी मुहब्बत की बदबू आती है।

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बिन पैमाने के बँटता बिखरता नशा,
हर युवा तुझसे मतवाला होता है।
ऐ इश्क तेरे चेहरे पे गुलाबी रंगत कैसी?
बदनामी का रंग तो काला होता है।

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कदम तब भी लड़खड़ाते थे कदम अब भी लड़खड़ाते हैं,
फर्क इतना है कि लोग हमें आज बूढ़ा कहते हैं।
क्योंकि पहले हम पिता के साये में रहते थे,
मगर अब बेटे के मकान में रहते हैं।

जो दीदार ना हो पल भर  तो कोहराम मच जाता था,
आज एक पल नजर आ जायें तो गुनहगार हो जाते हैं। क्योंकि पहले हम पिता के साये में रहते थे,
मगर अब बेटे के मकान में रहते हैं।

पहले बातों से हमारी ,चेहरों पे मुस्कान आती थी,
आज बोल दें कुछ तो बवंडर हो जाते हैं।
क्योंकि पहले हम पिता के साये में रहते थे,
मगर अब बेटे के मकान में रहते हैं।

कभी दो बूंद टपकते ही मान मनौव्वल हो जाती थी,
आज रोते भी हैं तो नजर अंदाज हो जाते हैं।
क्योंकि पहले हम पिता के साये में रहते थे,
मगर अब बेटे के मकान में रहते हैं।
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