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कभी-कभी जो इंसान सबको खुश रखने की कोशिश करता है वो खुद एक दिन अकेला रह जाता है
प्यार को नफरत से बहुत दूर रख! हवस को हसरत से बहुत दूर रख! यूँही छोड़ देंगे तेरी महफ़िल, दिमाग को कसरत से बहुत दूर रख!!
जिंदगी एक उलाहना ही रही न तुम हमको न तुमको हम समझ पाए सोचा था चलेंगे अपनी मंजिल दोनों साथ साथ मिलकर न तुम पहुच पाए न हम पहुच पाए!!
फिर वही अफसाना रोज़ रोज़, रूठना ओर मनाना रोज़ रोज़, गर यहीं चाहते हो के तुम ही मैं हो जाऊ, तो पड़ेगा खुदी को भुलाना रोज़ रोज़!!
"अपनी खुशियों की चाभी किसी दूसरे को ना सौप दिया करे" क्योकि अपनी खुदगर्जी के खातिर वो उस चाभी को कही फेंक के भूल जाते है!!
आह से समंदर नही जल जाया करते! आसुओ से पत्थर नही पिघल जाया करते! इश्क ही करना था तो अपनी ही रूह से करते यू बेरुही शख्शो के साथ अपने कीमती पल जाया नहीं करते
कुछ इस कदर रिश्ता-ए दिल था मुजे डुबोने वाला खुद साहिल था फैसला उसी के हाथों छोड़ दिया जो मुंसिफ ही मेरा कातिल था
कोशिशें करलो हजार होता वही जो रब का लिखा होता है! कभी इंसान तो कभी वक्त बेवफा होता है!!
लोग कहते है कि खुस रहो लेकिन मजाल है कि रहने दे!!
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