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Rachel Abraham

Rachel Abraham

@rachelabraham202245
(61)

अबी सरह कुरान की उन आयतों को लिखता था, जो मुहम्मद बोलता था। वह मुहम्मद से अधिक पढ़ा‌लिखा था। वह अक्सर मुहम्मद की रचनाओं को ठीक किया करता था और उन्हें और अच्छे तरीके से लिखने का सुझाव देता था, जिसे मुहम्मद मान लेता था। इससे उसको लगा कि कुरान किसी और दुनिया से नहीं आई है, बल्कि वह मुहम्मद के दिमाग की उपज है। वह वहां से भागकर वापस मक्का चला गया। मक्का में उसने सबको मुहम्मद के कुरान की हकीकत बता दी। जब मुहम्मद ने मक्का पर फतह हासिल की तो उसने लोगों को आश्वासन दिया था कि आत्मसमर्पण करने वाले किसी व्यक्ति को न तो सजा दी जाएगी और न ही उसका जबरन धर्मांतरण कराया जाएगा। बावजूद इसके उसने आदेश दिया कि अबी सरह का सिर कलम कर दिया जाए। हालांकि अबी सरह बच गया।
- Rachel Abraham

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मुहम्मद के अंधभक्त ☪️
कुरान में तमाम असंगतियां, विरोधाभास और गलतियां हैं। यह किताब अस्त-व्यस्त, भ्रांति फैलाने वाली, गंदे तरीके से लिखी गई तथा विसंगतियों और बेतुकी बातों से भरी हुई है। यह किसी संपादक के लिए भयावह सपने से कम नहीं है। जो मुसलमान कहते हैं कि कुरान एक चमत्कार है, उन्हें इसकी इतनी विसंगतियों, विरोधाभासों और बेतुकेपन में से कुछ भी परेशान नहीं करता, क्योंकि मुहम्मद ने ऐसा कहा है।

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मुसलमान यह महसूस करते हैं कि उनका जीवन नर्क है, उनका देश एक कसाईखाना है, फिर भी वे खुद को कोसते हुए कहते हैं कि सच्चे इस्लाम पर अमल न करने के कारण ही उनकी यह दुर्गति है। जबकि सच्चाई यह है कि सच्चे इस्लाम के कारण ही इन मुसलमानों का जीवन कष्टमय और नारकीय है।

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मुहम्मद के अंधभक्त ☪️
ऐसे दसियों कथित 'चमत्कार' हैं, जो मुसलमान मुहम्मद के साथ जोड़ते हैं। इनमें से अधिकांश तथाकथित चमत्कारों का दावा स्वयं मुहम्मद ने ही किया है। ये ऐसे चमत्कार थे, जिसकी पुष्टि किसी और ने नहीं की, केवल मुहम्मद ने स्वयं की है। फिर भी कोई मुसलमान इन कथित चमत्कारों पर संदेह नहीं करता है। इसी तरह के एक कथित चमत्कार में मुहम्मद ने दावा किया कि वह जिन्‍नातों के शहर गया था। एक जगह उसने कहा कि मदीना में जिननातों के एक समूह ने इस्लाम कबूल कर लिया है। एक और मजेदार कहानी में वह दावा करता है कि उसकी एक दैत्याकार शैतान से लड़ाई हुई और उसने उस शैतान को हरा दिया।
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मुहम्मद के अंधभक्त ☪️
मुहम्मद ने कई बार सामाजिक मर्यादाएं तार-तार कीं। जैसे कि अपनी बहू जैनब से शादी करना, अपनी एक बीबी की अनुपस्थिति में चोरी-छिपे उसकी नौकरानी मारिया के साथ संभोग करना। वह 54 साल का था और उसने छह साल की आयशा से शादी की थी। जब वह केवल आठ साल और नौ महीने की गुड़ियों से खेलने की उम्र में थी तो उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। उसने दावा किया कि उसके ऊपर अल्लाह ने सबसे बेहतरीन आयत इस छोटी सी लड़की के साथ सोते समय कम्बल के भीतर नाजिल की। जब मुहम्मद सत्ता के शिखर पर था तो उसने एक और बच्ची को देखा। यह बच्ची अभी चलना सीख रही थी। उसने उस बच्ची के मां-बाप को बोला कि जब वह बच्ची थोड़ी सी और बड़ी हो जाए, तो उससे शादी करेगा। उस बच्ची की किस्मत अच्छी थी कि वह इस घटना के थोड़े समय बाद मर गया।
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इस्लाम के अंधभक्त ☪️
मुहम्मद असहमति से डरता था और आज तक उसके अनुयायी इस्लाम से नाइत्तिफाकी बर्दाश्त नहीं करते हैं। लेकिन इसी वजह से मेरा भी आत्मविश्वास मजबूत है कि एक बार मुसलमान से नास्तिक बने लोगों की आवाजें सुनी जाने लगीं तो दूसरे मुसलमान भी हिम्मत जुटा पाएंगे। इसके बाद इस्लाम की चीरफाड़ को रोक पाना असंभव हो जाएगा।
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इस्लाम के अंधभक्त ☪️
ऐ ईमान वालो! ऐसी चीजों के बारे में ( रसूल से ) न पूछा करो, जो यदि तुम पर जाहिर कर दी जाएगी तो तुम परेशानी में पड़ जाओगे। तुमसे पहले भी कुछ लोगों ने इस किस्म के सवाल पूछे थे और उस कारण उनका मजहब से भरोसा उठ गया था। ( कुरान. 40-02 )
बुखारी भी दो ऐसी हदीसें देता है जिसमें मुहम्मद कहता है, “अल्लाह ने तुम्हें बहुत सारे सवाल पूछने से मना किया है।”
इस्लाम के भ्रम को बनाए रखने के लिए यह एकमात्र तरीका है, ताकि इसकी बाध्यकारी अंधभक्ति बनी रहे और इसे अज्ञानता और भय के माध्यम से थोपा जा सके।

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इस्लाम के अंधभक्त ☪️
मुसलमान सख्त सजा के डर में जीते हैं। गुस्साए मुसलमान कभी भी तर्को को चुनौती नहीं देते हैं, वे तर्क पर विवाद नहीं करते, वे तो बस उस चीज से डराते है, जिससे वे खुद बहुत डरते हैं। वह चीज है जहन्नुम। कुरान में जो थीम सर्वाधिक आई है, वह है जहन्नुम। जहन्नुम का उल्लेख लगभग 200 बार, इसके बाद कयामत के दिन का उल्लेख लगभग 163 बार और 'फिर से जी उठने ' का उल्लेख 47 बार किया गया है। मुसलमानों में जहन्नम यानी दोजख का भय इस कदर बिठा दिया जाता है कि इस्लाम पर सवाल उठाने की कल्पना भर से वे कांप जाते हैं।

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इस्लाम के अंधभक्त ☪️
मुहम्मद का मिशन इसलिए फलता-फूलता रहा क्‍योंकि वह उस समय और उस स्थान पर पैदा हुआ, जहां अज्ञानी, अंधविश्वासी और अधिकांशत: पुरुषसत्तावादी लोग थे।
अपने लुटेरे मजहब को बढ़ाने के लिए मुहम्मद को जिन दुर्गुणों की जरूरत थी, वो उसके शुरुआती अनुयायियों में भरपूर थीं। पुरुषसत्तात्मक मानसिकता, कट्टरता, दंभ, अहंकार, अहंकारोन्माद, मूर्खता, शेखचिल्लीपन, लोभ, लालच, वासना, जीवन के प्रति घृणा और नीचता का लक्षण इस्लाम का हॉलमार्क है। ये सब अरब में कच्चे माल के रूप में पहले से ही उपलब्ध थे।
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इस्लाम के अंधभक्त ☪️
इस्लाम मानव को आध्यात्मिकता सिखाने के लिए नहीं बनाया गया था और न ही प्रबुद्ध बनाने के लिए इसको गढ़ा गया था। इस्लाम में आध्यात्मिक संदेश गौण है या कहें कि है ही नहीं। इस्लाम में ईश्वर भक्ति का अर्थ है मुहम्मद का अनुकरण करना है, उस मुहम्मद का जो पवित्रता से कोसों दूर रहता था। इस्लाम के मजहबी क्रियाकलाप जैसे नमाज और रोजा केवल गैरमुस्लिमों को इस्लामी दुनिया में लुभाने के लिए खिड़की पर लगाए गए आकर्षक पर्दे के जैसे हैं, ताकि इस्लाम का रूप धार्मिकता और आध्यात्मिकता का दिखे। झूठा रसूल उसी तरह होता है जैसे कि शेर की खाल में भेड़िया।
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