Quotes by Pravika in Bitesapp read free

Pravika

Pravika

@pravika2269


तेरी झप्पी से बनी मेरे कुर्ते पर वो सिलवटें भी वही है...
मेरे हाथों मे तेरे हाथों की छुअन आज भी वही है ।
देखती हु आज भी लकीरों को मिलाकर लेकिन,
फर्क इतना है की...
तेरे कंधे पर मेरा सिर और कमीज पे मेरे आँशु नही है ।।


हर शाम ढलता सूरज, उसके नजारे भी वही है....
परिंदो के उड़ते पंख, रोशन सितारे भी वही है ।
गुम है तो तेरी हँसी और मेरा खिलखिलाना,
शाम की चाय मे बेफिजूल बातों का वो जायका नही है ।।


#just_a_shayrii ....

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Ek khwaahish........ ☺😊


एक ख़्वाहिश थी......
पूरी करोगे क्या ?........
""बसंत की बहार, सावन की फुहार बनकर बरसने की"""
""हल्की सी धूप- छाँव मे खिलखिलाकर हँसने की""
एक ख़्वाहिश थी....
पूरी करोगे क्या?.....
बैठकर किसी पेड़ की छाँव मे मेरे साथ हँसोगे क्या?.....

""धवल प्रपात की भाँति धरा के आँचल मे गिरने की""
""उपवन मे तरु शाख पर लताओं सा आलिंगन करने की""
एक ख़्वाहिश थी....
पूरी करोगे क्या?....
बहुत कुछ कहना है तुमसे, सुनोगे क्या?....

""सदाबहार नदियों में धारा प्रवाह बनकर बहने की""
""आकाश मे खुले पंखो से कुछ पल खुशी से उड़ने की ""
एक ख़्वाहिश थी....
पूरी करोगे क्या?.....
उस आसमान की सैर करने चलोगे क्या?.....

"" चेहरे पे रौनक,अधरों पे मुस्कान बनने की ""
""हृदय के मकान मे स्वप्नो का आँगन बनने की ""
एक ख़्वाहिश थी...
पूरी करोगे क्या?....
उस मकान मे एक कमरा किराये पर दोगे क्या ?....


#just_a_shayari ......

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मैंने कहा— "गुलाल लगा दूँ अपने हाथों से?"
उसने मुँह फेर लिया...
क्या मेरा पूछना बेकार था,
या उसे किसी और का इंतज़ार था...?

ख़ैर, वो मेरे साथ तो था,
वो लम्हा भी बड़ा यादगार था...

काश! गुलाल की ख़ुशबू उसके गालों पर सजती,
मेरे हाथों की नर्मी उसके चेहरे को छूती।

काश! उसे भी पसंद होते होली के वो रंग,
काश! हम भी खेलते होली एक-दूजे के संग।

पर क्या करें...
मुझे पसंद बड़ा होली का त्योहार था ,
और उसे होली के ख़त्म होने का इंतज़ार था।

ख़ैर, वो मेरे साथ तो था...
वो लम्हा भी बड़ा यादगार था...

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राहगीर अपनी नियत रफ्तार से चलता जा रहा है , अन्न जल सब भूलकर भीआगे बड़ता जा रहा है ।
हो रही हैं नियत मंजिल पर पहुँचने की चिंता ,
ये सूरज क्यों इतनी जल्दी ढलता जा रहा है ।।.......
न किसी से बात चीत न किसी का परिचय करना
बस भागना है बहुत तेज न एक क्षण ठहरना ...
सोचते रहते है की कब आएगी ये मंजिल
पहुँच गये लक्ष्य पर तो मन जाएगा खिल...
देखो इस जमाने की होड़ कि निर उद्येश्य मानव भी दौड़ लगाता जा रहा है ,
अपने पसीने को व्यर्थ में बहाता जा रहा है
ये सूरज क्यों जल्दी ढलता जा रहा है ।।.........
इस अनजान भीड़ मे ना कोई अपना न कोई पराया है
कोई किसी पे भरोसा आज तक न कर पाया है...
कैसे बयां करू अपनी अंदर की आवाज इन करोड़ों मे
जो खो गई है इन अंजान गलियों के थपेड़ों मे...
पता नही कब इस सफ़र की अंतिम घड़ी से मिलाप होगा
जो पूछती है दुनिया मेरे पास उसका भी जबाब होगा ...
पर अंतरमन में एक डर सा सताता जा रहा है
जो इसकी गंभीरता को बड़ाता जा रहा है
ये सूरज क्यों इतनी जल्दी ढलता जा रहा है. ।।.....

#just_a_shayri .....

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