Quotes by Pratap Singh in Bitesapp read free

Pratap Singh

Pratap Singh Matrubharti Verified

@pratapsingh9126
(23)

मित्रों आजकल विकास-विकास बहुत चल रहा रहा है, हर तरफ विकास की चर्चा हो रही है।, इसी संदर्भ में प्रस्तुत है मेरी कविता.....
गुमशुदा विकास की तलाश
➖➖➖➖➖➖➖➖

मेरे प्यारे बेटे 'विकास'
लौट कर घर आज जाओ,
कहाँ-कहाँ नहीं तुमको ढूंढा
कर लिए सारे प्रयास ।
मेरे प्यारे......….
किसी ने कहा तुम गॉंवों में दिखे हो
वहाँ भी ढूंढ कर आया हूँ,
दिखे नहीं मुझे तुम कहीं भी,
कर ली सब जगह तलाश।
मेरे प्यारे बेटे......
किसी ने कहा तुम शहरों में दिखे हो
गलियों,सड़को, में ढूंढ़ लिया
थक कर,टूट गया हूँ बुरे हो चुके है, मेरे हालात ।
मेरे प्यारे बेटे .........
किसी ने कहा तुम अक्सर व्यापारियों के यहां दिखे हो
वो भी नोटबन्दी,GST,आर्थिक नाकेबंदी से थे परेशान
नहीं मिल पाया वहां भी कोई तुम्हारा सुराग़।
मेरे प्यारे बेटे.....
आने से बचने को
कोरोना का बहाना तो न बनाओ,
विदेशों में तो खूब दिखे हो
यहाँ भी दर्शन देते तुम काश...
फिर सुना तुम पागल हो गए हो
ऐसे हालात कैसे बन गए
सब ठीक हो जाएगा ,बस आ जाओ
सब ठीक हो जाएगा ऐसा मुझे है विश्वास ।
मेरे प्यारे बेटे .....
ते गम में तेरे दद्दा मौज उड़ा रहे है
तुझे ढूढ़ने के बहाने
कभी अमरीका, कभी कनाडा,कभी जापान जा रहें हैं
टूट गयी मेरी आस ।
मेरे प्यारे बेटे ......
अब लौट आ जाओ
तुम्हे कोई कुछ नही कहेगा
तुम्ही बहन गरीबी,और बीमार भारत माता
कर रहे इंतेज़ार तुम्हारा
थाम कर बैठे अपनी सांस....
मेरे प्यारे बेटे....

प्रताप सिंह

Read More

ख़ुशी

आज खुश बहुत था शंकर

तिनका-तिनका जोड़ कर

देह को दिन रात निचोड़ कर

एक सपना आखिर

साकार जो कर पाया था, 

कजरी के आंखों में खुशी 

अपार देख पाया था

बरसों से बारिश में 

टपकता मकान 

आज नया छप्पर

जो देख पाया था,

आज खुश बहुत था शंकर...

आज इस घर मे

महीनों बाद 

खीर बनाई गयी थी

दोस्तो को संग बिठा कर

ताड़ी पिलाई गई थी

उसके घर की छत का

इस साल टपकना

जो बंद हो जाने वाला था

बारिश के मौसम में

ठंडी फ़ुहारों का डर छोड़

चद्दर तान सो जाने वाला था

आज खुश बहुत था शंकर....

कजरी नई साड़ी में 

आज भी कितनी दमकती है

ताड़ी के नशे मैं 

रात भी कितनी बहकती है

बारिश गर्मी को धो रही है

कजरी का रूप

कितना भा रहा है

चांद भी बादलों में

छुपा जा रहा है

आज खुश बहुत था शंकर

आज बरस रहें है बादल

गरज-गरज कर

गरजने वाले भी बरस रहे है

मचल-मचल कर

बारिश का पानी

गजब ढहा रहा है

इतना बरस रहा है

घर मे आ रहा है

चूल्हा, खाट, बिस्तर 

सब कुछ भीगता जा रहा है

घर में घुसता पानी 

घर को लीलता जा रहा है,

छप्पर तो हां नही चुचा रहा है,

पानी तो फिर भी सता रहा है।

पानी में बहकर चूल्हा भी

चला जा रहा है,

शंकर की खुशियों को 

उड़ा रहा है।

कजरी शंकर की खुशियां

काफूर हो गयी है

थोड़ी ही थी अब तक जो खुशियां

जो और भी दूर हो गयी

फिर से दुखी है शंकर....



प्रताप सिंह

वसुंधरा, गाज़ियाबाद, उ०प्र०

9899280763

Read More