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प्रतिज्ञा

प्रतिज्ञा

@pnjoshi160641


એક-બે અવગુણ લણી,
બે-ચાર ગુણ જાણી લઉં છું.
ગજવામાં ખખડતા એ બે-ચાર સિક્કાની મજા,
હું આજે પણ માણી લઉં છું!

-प्रतिज्ञा

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सफ़र के सागर में,एक लहर सा हूं में।
किनारे पे टकराके फिर से, पलट जाऊंगा में।
पर बाद में, हर एक लहर में याद आऊंगा में।
ज़िन्दगी एक समा है, हर एक लहर में मोती परस लो।
फिकर मत करो!फ़िर से याद से याद यहीं दिलाउंगा में।।

-प्रतिज्ञा

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कुछ अधूरे काम क्यों न अब पूरे किए जाए।
रूठे हुए मन को क्यों ना दोबारा बहलाया जाए।।
क्या पता इस बार मन मना ना कर पाए!
क्या पता चाहता था जो दिल वो मन ख़ुद लेकर आए।।

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