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pintu majhi

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@pintumajhi.678666


🌼 अनुभूति – दिल से दिमाग तक की यात्रा 🌼


अनुभूति आई सुबह-सुबह, दरवाज़ा खटखटाई,
बोली — “मैं दिल से आई हूँ, ज़रा चाय तो पिलाई!” ☕

मैं बोला — “अभी-अभी तो टूटी है नींद प्यारी,
और तू लेने लगी है दर्शन की जिम्मेदारी?”

कभी खुशी में झूमती, कभी दुःख में रो देती,
बिना बुलाए आ जाए, बातों से बहका देती! 😅

जब छत पर आया कबूतर, बोली — “प्यार का संकेत है!”
पर नीचे गिरा जो परिंदा, बोली — “अरे ये तो लफड़े की रीत है!” 🐦

शर्म से बोली — “वो देखो, पड़ोसी मुस्कराया,”
मैं बोला — “बिजली का बिल आया है, वो रोने को छुपाया!” ⚡

फिर भूख लगी तो बोली — “देखो जीवन की साधना है,”
रोटी देख बोली — “प्रेम की सर्वोच्च भावना है।” 🍞

गर्मी में पंखा चला तो बोली — “शीतल स्पर्श की अनुभूति है,”
AC चला तो बोली — “बिल से जीवन में त्रुटि है!” 😂

Online क्लास में टीचर ने डाँटा — “Unmute कर के बैठा करो!”
अनुभूति बोली — “यह मौन साधना का चरम है, ज़रा संयम से सहो!” 🎧

खाँसी आई तो बोली — “कोरोना फिर से आया है,”
जब दादी ने हल्दी दी — “यही अनुभव तो माया है।” 🤧

मैं चुप बैठा मोबाइल में, reels देखता जा रहा था,
अनुभूति बोली — “अरे वाह! तुम तो Self-realisation पा रहा था!” 📱

प्याज़ काटते आँखें बहने लगीं — “ये तो सच्चा इश्क़ है!”
पर जब सब्ज़ी जली तो बोली — “तपस्या में फिस्क है।” 🧅🔥

अंत में बोली — “अब मैं जाऊँ, दिनभर काफी छाप छोड़ी,”
मैं बोला — “ठीक है बहन, पर कल मत आना, बहुत चिट्ठियाँ छोड़ी!” ✋

😄 "अनुभूति" — जब हो जाए थोड़ी ज़्यादा, तो जीवन बन जाए पूरी ड्रामा-सीधा नाटकशाला!

✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन
(कटनी, मध्यप्रदेश)

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🌿 सावन में आखिर मन शिवमय क्यों 🌿

बरसों बीते, फिर वही सावन आया,
भीगी हवाओं ने "भोले" को फिर से बुलाया।

हर बूंद में घुला एक मंत्र-सा प्रभाव है,
जैसे शिव की जटाओं से बहता कोई भाव है।

मेघों की गर्जना जब डमरू सी लगती है,
मन की हर गूंज शिव-ध्यान में रचती है।

वृक्षों की हरियाली में नंदी की छाया है,
हर हर महादेव की गूंज जैसे सृष्टि की माया है।

सावन की फुहारें नहीं केवल पानी हैं,
ये तो शिव के आँचल से गिरती कहानी हैं।

कांवड़िये पथ पर नहीं, श्रद्धा में बहते हैं,
हर कण-कण में भोलेनाथ के रंग रहते हैं।

व्रत-भक्ति और रुद्राभिषेक की बेला,
सावन शिव का मास है, नहीं कोई झमेला।

जैसे धरती शिव को प्रणाम में झुक जाती है,
वैसे ही हर आत्मा ध्यान में रमता जाती है।

सावन मन को बस शिव के समीप ले आता है,
दुनिया छूटे न छूटे, पर “शिव” मन में बस जाता है।

🌧️ “शिव को पाना हो तो सावन से बात कर लो,
हर बूँद में उनका आशीष बरसता है...” 🌸

✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन
कटनी, मध्यप्रदेश

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जो सावन ने कहा है…

जो
सावन ने बरस कर कहा है न,
तो याद रखना…
और जो
भीग कर हमने भी कहा है न,
वो भी याद रखना।

जो
बूंदें तेरी दहलीज़ छू आई हैं,
वो सिर्फ़ पानी नहीं थीं —
हमारी दुआएँ थीं…
याद रखना।

जो
पेड़ झुके हैं तेरी छांव में,
वो थकान नहीं,
तेरे इंतज़ार की नमी है…
याद रखना।

जो
सांवली घटा आज आई है,
वो मौसम नहीं,
हमारी चाहत का पैग़ाम है…
याद रखना।

जो
हमने सावन में कहा है न,
वो सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नहीं थे,
दिल की पूरी किताब थे…
तो पन्ने पलटना…
और याद रखना।

डॉ पंकज कुमार बर्मन,कटनी,मध्यप्रदेश

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🌕📿 गुरु पूर्णिमा – एक आत्मिक जागृति 📿🌕

कभी जीवन की राहों में
जब उत्तर नहीं मिलते थे,
एक आवाज़ थी — "धैर्य रखो, समझ आएगी..."
और वही आवाज़ थी मेरे गुरु की... 👣🕉️

किताबों से तो ज्ञान मिला,
मगर जीना मैंने उनसे सीखा,
हर चुप्पी के पीछे का मौन,
हर प्रश्न के पीछे का अर्थ...
उन्होंने ही समझाया। 📚💫

"गुरुजी नमस्ते" अब
व्हाट्सऐप पर भेज देते हैं लोग,
पर वो हाथ जोड़कर
चरण-स्पर्श करने का सुख,
अब कहाँ खो गया? 🙏📲

गुरु वो नहीं जो सिर्फ पढ़ा दें,
गुरु वो हैं जो
जीवन को दिशा दे दें,
जो मौन में भी
आपका हाथ थामे रहें... 🕯️🛤️

अब भी सूरज उगता है,
पर मन के भीतर अंधेरा सा क्यों है?
क्योंकि दीया जलाने वाला गुरु
अब हर जगह नहीं होता। 🌞🕯️

आज गुरु पूर्णिमा है...
आइए सिर्फ "शब्द" नहीं,
श्रद्धा अर्पित करें —
और उस आत्मिक संबंध को फिर से जगाएं...

🌸 गुरु पूर्णिमा की मंगलमय शुभकामनाएं! 🌸
✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन, कटनी, मध्यप्रदेश

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🌞🌞 गुरु पूर्णिमा की शुभ प्रभात 🌞🌞
🌕 जय गुरुदेव! 🌕

क्यों
ढूंढता है
हर राह में
तू रोशनी का सवाल,
जब
तेरी अंधेरी रातों में
गुरु बन कर
उजाले से मिलता है निहार...

गुरु
केवल नाम नहीं,
जीवन की साँसों में
प्रकाश की पहचान है।
हर सीख
एक दीप है,
हर दृष्टि
ज्ञान की जान है।

चल पड़
गुरु के बताए पथ पर,
विश्वास रख
उनकी हर बात पर,
क्योंकि
गुरु के चरणों में ही
मुक्ति का सार है...

🌸 गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं! 🌸
✨ जय श्रीराम ✨
✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन, कटनी, मध्यप्रदेश

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आज फिर लगा कि...

आज फिर लगा कि कुछ छूट गया है,
भीड़ में चलते-चलते मैं रुक गया हूँ।
खुशियों की चादर ओढ़े जो चेहरे थे,
उनके पीछे कोई ग़म छुप गया है।

आज फिर लगा कि रिश्तों की भीड़ में,
एक अपनापन कहीं खो गया है।
जो बातें थी दिल से दिल तक जाने की,
वो शब्दों में भी अब दम तोड़ गया है।

आज फिर लगा कि मुस्कान नकली थी,
अंदर कुछ रोता-सा शख़्स बैठा था।
आईना देख हँसते थे जो लोग कभी,
अब परछाइयों से भी डर गया है।

आज फिर लगा कि वक़्त से हारा हूँ,
मगर हार के भी कुछ सीखा हूँ।
जीवन की भीड़ में खोया हूँ भले,
पर भीतर कहीं मैं जीता हूँ।

✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन,कटनी,
मध्यप्रदेश
- pintu majhi

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☀️ सुप्रभात... याद है ☕

याद है...
हर सुबह तेरी “सुप्रभात” वाली मुस्कान,
और चाय के प्याले में घुली वो बातों की जान।

याद है...
खिड़की से झाँकता सूरज,
और तुम्हारे “जागो ना!” कहने का अंदाज़ भी याद है।

याद है...
तुम्हारा सुबह-सुबह बेमतलब लड़ना,
फिर "चलो मुस्कुरा लो" कह कर सब सुलझा देना भी याद है।

याद है...
साथ में उठना, साथ में दिन की शुरुआत करना,
और तेरे बिना सुबह का अधूरा सा रह जाना भी याद है।

याद है...
तेरी भेजी वो फूलों वाली सुप्रभात तस्वीरें,
और हर इमोजी में छिपे जज़्बात भी याद हैं।

याद है...
तेरे शब्दों में बसी दुआएं,
और उन दुआओं में मेरा नाम होना भी याद है।

आज भी हर सुबह
तेरी यादों का सूरज उगता है,
और तेरी शुभकामनाओं की रौशनी से
मन फिर से "सुप्रभात" कहता है... ☀️

✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन,कटनी,
मध्य प्रदेश

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