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Needhi Patel

Needhi Patel

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(4)

नफरत की इंतिहा

नफ़रत है मुझे महोब्बत से,

अनकहे जज़्बातो से,

उलझन सी लगती है जिंदगी में,

घुटती है ख़्वाहिशे हरपल,

जीने की तमन्ना बिखरती है हरदम,

जिंदगी की नायाब सी हकीकत,

अब इक पेहली है अनसुलझी,

पेहली का पेहलु सहेजते सहेजते,

यादो की सिलवटें तरसाती है सुकूँ को,

चटकती सी ये जिंदगानी,

उखड़ी हुंई साँसो के सहारे,

कटके फिर थम जायेगी,

ज़ुर्रत की है हमने संवरने की,

नाफरमानी की है खुद को बदलने की,

ख़िदमत में शामिल है उसुल ये जिंदगी के।

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