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आज मेरा दिल और दिमाग एकजुट होकर फैसला नही ले पा रहा है ,कि मुझे क्या करना चाहिए।अगर ये पैसे मैं अपने बच्चों को बाट देता हूँ तो अपनी पत्नी के लिए इस जीवन में कुछ न कर पाने के अपराधबोध मुझे सालता रहेगा और पत्नी के सपने को पूरा करता हूँ तो एक पिता के रूप में अपराधबोध का अनुभव करूंगा।" अपने जीवन की कमाई हाथो में लिए मैं, सीताराम साह, गहरी चिंता में हूँ। शायद पाठकगण मेरी इस सवालिया समस्या को समझ नही पा रहे होंगे ।तो आइये मैं अपना परिचय आप सबसे करवाता हूँ।"मैं सीताराम साह ,अपने माता-पिता की पहलीं औलाद ।मेरे जन्म के लिए माँ ने काफी मन्नते मांगी। और मेरे जन्म के बाद मेरे पिता ने उसे पूरा भी किया। मेरे बाद मेरे और भी भाई-बहन का जन्म हुआ।लेकिन पिता के दारू की लत के कारण मुझे समय से पहले बड़ा होना पड़ा। सभी भाई- बहन छोटे थे ,सो मै उनका बड़ा भाई कम पिता ज्यादा था। घर चलाने के लिए पिता के उस व्यवसाय को मैने सम्हाल लिया,जिसे पिता ने अपनी दारू की भेंट चढ़ा दी थी। बहुत ज्यादा तो नही लेकिन इतने बड़े परिवार का खर्च चलने लगा। जिम्मेदारियां बड़ी थी, जल्द ही माँ ने मुझे विवाह के बन्धन में भी बांध दिया। पत्नी के रूप में मुझे कांता मिली।जिसने खुद कम उम्र में ही अपने पिता खोया था। संवेदनशील कांता मेरे घर को ही अपना घर समझ कर परिस्थियों के साथ ढलने का प्रयास करने लगी। धीरे धीरे समय गुजरा।भाई -बहन भी बड़े हो गए।मैं भी अब तक तीन बच्चों का पिता बन गया। भाईयो की शादी और उनके परिवार बढ़ने लगे।उनकी पत्नियां शायद तालमेल न बैठा सकी और अलग होने की कोशिश करने लगी। बहन को भी उसका हिस्सा चाहिए था। सो सम्पति का बंटवारा हो गया। अच्छा हुआ की पिता ने ये सब ना देखा और अपनी गति को पा गए । माँ को भी सम्पति के बटवारे में बेटी को हिस्सा मांगना उतना ही अप्रत्याशित लगा जितना मुझे। सम्पति में तो सबने हिस्सा लिया पर बूढी होती माँ मेरे ही हिस्से आई। व्यवसाय भी लगभग बिखर चूका था। पर मेरी पत्नी के बचे खुचे गहने उसे एक बार फिर खड़ा करने में मेरी मदद करने लगे। मेरे दो बेटे और एक बेटी थी।जवानी की दहलीज पर खड़े बड़े बेटे को मैने काफी कोशिश की वो मेरा टूटता व्यवसाय सम्हालकर मेरी सहायता करें ।पर उसे बाहर पढ़ना था,कुछ अलग करना था। दूसरा बेटा अभी काफी छोटा था।घर के बिखराव की बू को देखते हुए माँ और पत्नी की सलाह पर मैने अपनी बेटी के हाथ पीले कर दिए। हाँ ,मन माफिक दामाद तो न पा सका।पर उस परिस्थिति में मेरे पास दूसरा कोई चारा न था। आज बिटिया की शादी को पच्चीस साल हो चुके है। बड़े बेटे ने भी मेहनत करके अपनी मंजिल को पा लिया।शहर में नौकरी, घर और परिवार में मगन और मस्त है। बेटे की शादी को भी बारह साल हो जाएंगे।माँ भी अपनी गति को पा ली। जीवन के इतने उतार-चढ़ाव झेलने के बाद अब हिम्मत शेष न थी।सो छोटा बेटे को अपने साथ व्यवसाय में लगा लिया ।कहते है बुरा वक्त समय के साथ गुजर ही जाता है। अब मै भी सुदृढ होने लगा। घर में खुशियां खिलने लगी ।इन्हें मीठे पलों में कांता ने हमारी शादी की पचासवी वर्षगांठ को मनाने की इच्छा व्यक्त की । सच जिंदगी में ,अबतक मैने अपनी कांता को कोई सुख ना दिया।उसे अपनी जिम्मेदारियां में ही उलझाए रखा। अबतक बुढ़ापे ने भी अपना दस्तक दे दिया।अब ये एक छोटी सी ख़ुशी मै उसे देना चाहता हूँ। इसके लिए मैने कुछ रकम भी जमा लिया था। पिछले हफ्ते बच्चे छुट्टियों में जुटे थे। बच्चो के सामने मैने ये बातें कही और कांता की इच्छा का जिक्र किया ।पर बच्चो के व्यवहार में कोई उल्लास न झलका । आज हफ्ते दिन बाद बड़े बेटे ने फोन आया और मुझसे वो पैसे मांगते हुए बोला -" पापा, मैने अपनी जॉब छोड़ दी है,अब मै नया व्यवसाय करना चाहता हूँ। आप कुछ पैसो से मेरी मदद कर दो ।"मैं समझ गया कि मेरे बेटे की नजर उन पैसों पर गड़ गयी है जो मैने अपनी कांता की ख़ुशी के लिए जोड़े थे। जब यही गम मैंने अपनी बेटी से बाटने के लिए फोन किया तो उसका जबाब कुछ ऐसा था- "पापा , आप तो हमेशा अपने भाई - बहन और बेटे के लिए ही जिए है ।मुझे तो कुछ किया ही नही।अब इस समय क्या अपनी सालगिरह मनाओगे । वही पैसे हम सब को बाट दो, आपके दामाद जी भी अपना व्यवसाय शुरू करना चाहते है।" बेटी के मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे सालो पहले अपनी बहन का वो चेहरा याद आने लगा ,जो उसने हिस्सेदारी के समय दिखाया था। मुझे लगा की मै गश खा कर गिर जाऊंगा। अब तो छोटे बेटे के क्या उम्मीद करता, जब दोनों बड़े बच्चो का ये हाल था तो। सच कहूं तो आज उनकी ये बात, मेरी और कांता की संघर्षपूर्ण परवरिश पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।" दोस्तों ,हम हमेशा अपने पिता को आदर्श मानकर उनकी नकल करने की कोशिश करते है।पर क्या पिता के उस संघर्ष को नही देख पाते है जो उन्होंने खुद को खड़ा करने के लिए किया है।हमारी लाखो इच्छाओं की पूर्ति करने वाला पिता अपने न जाने कितनी खुशिया बलिदान की होगी।पर बदले में क्या हम उस बलिदान की कीमत चूका पाते है? इन सवालो का जबाब अगर आपके पास है तो जरूर साझा करें।
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