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उसने कहा कुछ नहीं हमने सुना कुछ नहीं, वो बातूनी बहुत थी पर मुझसे कुछ कहती नहीं थी। हम हर बात समझ जाते थे क्योंकि उसकी आंखे बातूनी बहुत थी।। #बातूनी
मन से हूं बेताब तन से नहीं, आंखो में है तेरी चाहत, पर दिमाग से उग्र नहीं।इंतजार कितना किया, सांझ होने को है सब्र अपने रुआब पर है,लेकिन इश्क़ को हमने उग्र होने ना दिया।। #उग्र
फलसफे जिदंगी के बहुत है,लेकिन शायद हम उनके लायक नहीं। कल तक जो अपने थे,आज हम उनके लायक नहीं।। #लायक़
सपने अपने थे खाली हाथो में,घर कर गए दरकती दीवारों में। कल किसको पता है, हम रहे ना रहे इन सजावटी ख़यालो में।। #सजावटी
शरीर आत्मा का , आत्मा जीवन का , जीवन आनन्द का, आनन्द प्रेम का, प्रेम प्रकृति का, प्रकृति परमात्मा का, परमात्मा ब्रह्माण्ड का, और ब्रह्माण्ड शून्य का घोस्ला है। #घोंसला
सही गलत के चक्र में उलझा है इंसान, अपना ही असतित्व भूल गया नहीं रहा कुछ ज्ञान, किसलिए है जन्म हुआ नहीं है इसका भान,अब नहीं समझे तो कल की आशा छोड़ ,आज अपना बचा ले परसो की ना सोच।
रिश्तों की खवाहिश किश्तों में ना करना ,अपनों से आजमाइश कभी सपनों में ना करना।
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