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Khamoshi ka shor
Omdeep verma
उतर खरा उन उमीदों पर जो तेरा दिल लगाए बैठा है करके दिखा वो सपना पूरा जो खुली आंखों से देखा है ।।
हमारी बर्बादी पर हमारे अपने भी क्या शितम ढा़ते रहे जिन्हें अपना दर्द सुनाया वो ही मुस्कराते रहे ।।
मैने अपनी डायरी पढ़ने का हक क्या दिया उसे जाते वक्त वो पन्ने ही फाड़ गई जिनमे उसका जिक्र था।।
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लहराती हुई हवा की तरह मनभावन खुशबू की तरह इश्क़ का खुमार लेकर आई हो। मेरी पतझड़ सी जिंदगी में तुम बसंत की बहार बनकर आई हो ।। #वसंत
कभी तुम भी मुझे याद कर लिया करो सामने से नहीं तो ख्यालों में तो बात कर लिया करो मैं रोज मांगता हूं तुम्हें खुदा से कभी तुम भी फरीयाद कर लिया करो ।।
खुश ना होकर भी खुश हूँ कहते हो बता दो किस बात का गम है तुम्हें जो चुपचाप तुम सहते हो।।
कुछ भी नहीं था मेरे पास तेरे आने से पहले और कुछ भी नहीं है अब तेरे जाने के बाद।।
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