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एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा । अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता । त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता । इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है । औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है । अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ। ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ। पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई । अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं, माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई ? अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो । दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से तुम बच लोगे यह मत समझो । धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो । हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो । जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष, स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन यौवन अशेष । अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध, काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा । कवी एवं वक्ता - माननीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी
मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या , दिल कि बर्बादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या ?
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