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Nishant Bhardwaj

Nishant Bhardwaj

@nishantbhardwaj7388


उधर अमीरों की हो रही दीवाली
इधर गरीबों की है रिक्त थाली
उधर खज़ानों की हैं बहारें
इधर गरीबों की जेब खाली
उधर डी•जे पे है धूम जमके
इधर न गीत है, न है कव्वाली
उधर सज रहे हैं महल दुमहले
इधर अंधेरों की है दुनिया निराली
उधर जगमगाती हैं मुंडरें घर की
इधर है सर पे बस इक रात काली
उधर पैमानों से छलक रहे हैं जाम उनके
इधर ख्वाबों की हमने है अर्थी निकाली...।

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ऐ दिल भला तेरे यूं धड़कने का सबब क्या है...
अगर आशिकी भी यहां बेहयाई है, तो अदब क्या है...!

इस समाज के दामन में, आ मैं मोहब्बत का एक नया सबक गढ़ दूं...
कि मेरी गीता तू समझ ले,
और तेरी क़ुरआन मैं पढ़ लूं...!

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उत्पीड़न के घूंट पिए हों मैने जिस राजा की नगरी में,
मैं उस राजा को कैसे राजा कह दूं उसी राजा की नगरी में।