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Naseem khan media officer

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@naseemkhanmediaofficer6142


मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।।

हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते।
मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते।
सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं।
मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते।
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे।
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो।

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।।

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं।
मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं।
हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से।
सौ बार म्रत्यु के गले चूम आया हूं।
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी।
तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो।
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।

शर्म के जल से राह सदा सिंचती है।
गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है।
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है।
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है।
पग में गती आती है, छाले छिलने से।
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो।

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।।

फूलों से जग आसान नहीं होता है।
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है।
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती भी।
है नाश जहां निर्मम वहीं होता है।
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे।
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो।

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं।
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो।।

मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता।
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता।
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर।
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता।
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे।
तुम मेरा मन-मानस पाशाण करो।

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं।
तुम मत मेरी मंजिल आसान
नसीम

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