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बचपन की एक बात बहुत अच्छी लगी मुझको...बचपन की वो बात कि बचपन में सब अच्छा था,कहाँ थे तुम जो आज तुम हो कहाँ था मैं जो आज मैं हूँ, तब तुम भी बच्चे थे और मैं भी बच्चा था और मौहल्ले में जो हमारे साथ खेला करते वो भी बच्चे थे,खेलना कूदना तो चलता ही था मगर कभी कभी झगड़ा भी हो जाता था लेकिन ये झगड़ा ज्यादा देर नही चलता था,खेल भी कैसे कैसे कंचे, गिल्ली डंडा, छुपम छुपाई जैसे..और वो पुराने टायर जो साईकिल से निकाल दिये जाते थे उनको लेकर पूरी गली में पी पी की आवाज करके दौड़ते थे,मगर आज वो खेल नहीं खेले जाते, आज के खेल कुछ अलग है...मुहँ में शहद मिश्री रखता है हर कोई और दिल में विशवासघात की तेज छुरिया चलती है भाई तो हम आज भी है पर अब वो प्यार नहीं,जो करते थे एक दूसरे का इंतजार साथ खाने के लिए अब वो इंतजार नहीं,बनाते थे हम मिट्टी की ट्रेकटर ट्रोली और फिर साथ खेलते थेमिलता था बस एक ही रूपया वो भी कभी कभीयाद है मुझको वो रंग बिरंगी मिठी गोलिया जो मिल बाँट कर खाते थे,पेंसिल के छिल्को वाली वो बात याद है? जो बचपन में बहुत मशहूर थी वो बात कि पेंसिल के छिल्को को दूध में मिलाने से रबड़ बनता है...हमारा तो कभी बना नहीं शायद किसी का बना हो बचपन की यही बात की बचपन में सब अच्छा था बहुत अच्छी थी.... ~~ नरेश गुर्जर ~~ हिसार, हरियाणा
कृष्ण प्रेम में होकर लीन होयी वेरागन मीरा रानी ऐसी लागी लगन उसको कहलाई कृष्ण प्रेम दीवानी
समझता है अपने आप को बड़ा शायर "नरेश" शायरी चीज क्या है जरा ये तो बता
ख़्याल उतर आते हैं ज़हन में तो लिख देता हूँ "शायर हूँ मैं" भला कब कहता हूँ
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