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mukesh more

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@mukeshmore288gmail.com075420

मोहब्बत मैं किए वादे क्यों अक्सर टूट जाते हैं
हमारे साथ चलने वाले क्यों राहों में छूट जाते हैं
बया कैसे करे हम उन से दिल की ये कहानी
जो बातों ही बातों में अक्सर रूट जाते हैं
मिलाए कैसे उनको अकेले में तन्हाई से
जो महफिल में भी तनहा छूट जाते है

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तेरी झील सी आंखो में मेने ये पैगाम देखा हैं
तेरे साथ गुजारे हर पल को सुबह शाम देखा हैं
और कोन कहता हे की बिछड़े हुए लोग मिलते नही
मेने बिछड़े हुए लोगो को मिलते सरेआम देखा हैं
बारिश के मौसम में बादलों में गड़गड़ाहट आ,ही जाती हैं
और सुना है मेने लोगो से की गरजते हुए बादल बरसते नही
मेने गरजते बादल को बरसते हुए खुलेआम देखा हे

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दिल की बातो को दिल में ही रखा जाए तो अच्छा होगा
दिल के अरमा किसी को ना बताया जाए तो अच्छा होगा
और इन जुल्फों के साए से दूर ही रहा जाए तो अच्छा होगा
किताबों से ही लगाव रखा जाए तो अच्छा होगा
अपने मन को लक्ष्य पर ही रखा जाए तो अच्छा होगा
और इन कलयुग की मेनकाओ से दूर ही रहा जाए तो अच्छा होगा
निरंतर चला जाए तो अच्छा होगा
मंजिल की ओर ही बड़ा जाए तो अच्छा होगा
और इन बाबू सोना से दूर ही रहा जाए तो अच्छा होगा

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हर शक्स बदल ही गया मौसम की तरह
वो शक्स बरस ही गया बादल की तरह
अब नजरे चुराए केसे हम उनसे भला
वो शक्स सामने आ ही गया दर्पण की तरह
ये दास्ता सुनाए हम किसको जरा
वो शक्स बदल ही गया गैरो की तरह
हम घर को लौट जाएं कैसे ये बता
जब घर से निकल आए मुसाफिर की तरह

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दो पल की देर ही सही तू कदम बड़ा तो सही जरा सा
मंजिल भी मिलेगी ऐ मुसाफिर तू कदम बड़ा तो सही जरा सा
पहाड़ और पर्वतो से ऊंचा तेरा दर्जा होगा
तू अपने परों को खोल तो सही जरा सा
जो तूने खोया उससे बेहतर तुझे हासिल होगा
तू अपने हौसलों में उड़ान भर तो सही जरा सा
हर शहर और हर गली में तेरा ही परचम होगा
तू खुद को पहचान तो सही जरा सा
जहां-जहां से तुझ पर तानो की बौछार हुई है
वही फूलों से तेरा सत्कार भी होगा
तू सबसे आगे चल तो सही जरा सा
नदी समंदर रोक ना पायेगा तुझे
और लहरों पर तेरा सरताज होगा
तू अपनी गति को बढ़ा तो सही जरा सा

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