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Monika Agrawal

Monika Agrawal

@monikaagrawal1512gmail.com8866


कुछ अनकहा,निःशब्द सा है मेरे मन के किसी कोने में,
जिसे सुकून मिलता है,चुपचाप अंधेरी रातों में रोने से,
चकाचौंध रोशनी की तरुणाई में,लोग तो ऐसे हो गये हैं बहरे,
बचा है बस मेरा अंतस उद्विग्न,जैसे शांत पानी में उथली लहरें,

-Monika Agrawal

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तुमसे इश्क़ का ख़्वाब हमारा, यूँ शर्मिंदा हो गया,
सरेआम घूमता तू तो, आवारा परिंदा हो गया,
गली-गली भटकते तूने, कितने ही शहर कर ड़ाले वीराँ,
मोहब्बत हो गयी फ़ना,अब तू कहता है,तेरा ज़मीर जिंदा हो गया,,,??

-Monika Agrawal

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